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Saturday, October 20, 2007

हे प्रभु हमारा ह्रदय आपके श्री चरणों से जुडे रहें

हे जीवन के आधार। सुख स्वरूप सचिदानंद परमेशवर। समस्त संसार में आपने अपनी कृपाओं को बिखेरा हुआ है। हमारा क्षद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो। हे प्रभु। जब हम अपने अंतर्मन में शान्ति स्थापित करते हैं तब हमारे अन्त:स्थ में आपके आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित होने लगता है। जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण और प्रेमपूर्ण हो जाता है।

हे प्रभु! हमारा ह्रदय आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे, हमारा मन आपके श्रेचार्नोनें लगा रहे, यह आशीर्वाद हमें अवश्य दो। ताकि हम पर हर दिन नया उजाला, नई उमंगें, नया उल्लास लेकर जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकें ! ऐसी हमारे ऊपर कृपा कीजिए।
हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें

हे प्रभु! हमें यह शुभाशीष दीजिए। यही आपसे हमारी विनती है, यही याचना है। इसे स्वीकार कीजिए।


आचार्य सुधांशु जी माहाराज

जीवन संचेतना अक्टूबर २००७


Thursday, October 4, 2007

श्री कृष्ण जीं की प्रार्थना


है प्रभू ! तेरा भरोसा ही संसार का सहारा है



है सच्चिदानंद स्वरूप ! है शुद्ध ,बुद्ध युक्त स्वभाव ! है समस्त जगत को ज्ञानाम्रृत का पान कराने वाले गोविन्द !हम सभी भक्तों का श्रृद्धा भरा प्रणाम स्वीकार हो ! है प्रभु ! तेरा भरोसा ही संम्पूर्ण संसार का सहारा हो ! तेरा अतिशय ,अनन्य प्रेम सभी जीवों के ऊपर अनवरत बरसता है ! हम सदैव अपने चित्त को योग युक्त सत्ता का सत्ता का ध्यान करते रहें !
हे संसार के कण कण में बसने वाले सर्वव्यापक ,जगत के नियन्ता श्रीकृष्ण ! आप परम दयालु हो ,न्यायकारी हो , सुई की नोक का लाखवां हिस्सा भी किसी को कम या अधिक नहीं देते ! हम अल्पज्ञ हैं ,अज्ञानी हैं ,कर्म की छोटी सी चोट से ही हमारे कदम लड़खड़ा जाते हैं ! ऎसी विषम परिस्थिति में भी तुम ही दया करते हो ! निराशा के क्षणों में आशा प्रदान करते हो , निर्बलता में आत्मबल बनकर हमारे अंग संग रहते हो और जब हमारा मन विषाद में ड़ूबजाता हे तब आप प्रसन्नता का प्रसाद प्रदान करते हो !
हे जगदाधार !इस नश्वर संसार में आप ही सर्वज्ञाता हो ,शब्ततीत हो फिर भी इन्सान तुम्हें शब्दों से बांधने का निरर्थक प्रयास कर्ता है ! तेरे चरणों में तो केवल भावनाओं की भनक ही पहुँचती है ! हे भगवान ! मेरा रोम रोम तुम्हें पुकारता रहे ,मेरा ह्रदय प्रेममय हो जाए ,मेरे हाथ परोपकारी होन ,मेरी द्रष्टि सकारात्मक हो जाए और में श्रद्धा का आसान बिछाऊं ,मुझे एसी अनुपम अनुभूती हो जाए कि मेरा देव मेरे सम्मुख खडा है और में आनन्दित होकर चरण वंदना कर रहा हूँ ! हे प्रभु ऐसा आशीर्वाद प्रदान कीजिए यही प्रार्थना गई ,याचना है , स्वीकार कीजिए ,सबका बेडा पार कीजिए !
ॐ शान्ति !शान्ति ! शान्ति
आचार्य सुधांशु जीं महाराज
जीवन संचेतना सितंबर २००७