Saturday, December 1, 2007
Sunday, November 11, 2007
हे प्रभु। सारा संसार ही तेरा परिवार है।
हे जगत के नियन्ता जगदीश्वर। हे नारायण। हे शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वभाव। हे जन्म और जीवन देने वाले परमपिता परमात्मा। हम सभी भक्तों का श्रद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो। हे प्रभु। सारा संसार ही तेरा परिवार हे, तेरे चरणों में आनंद का वास हव, सभी के ह्रदयों में आपका निवास है।
हे प्रभु। जिस मेधा बुद्धि को हमारे पूर्ववर्त्ती ज्ञानी-ध्यानी तथा योगीजनों ने प्राप्त किया और अपना कल्याण किया उसी विशेष बुद्धि को आप हमें प्रदान करें।
हे प्रभु हमें वह बुद्धि दो जिसके द्वारा हम सन्मार्ग पर चलकर आदर्श को धारण कर सकें तथा दोषों का परित्याग करें।
हे प्रभु। हमारे बुद्धि के रथ को आप हांकने वाले बनें। हम सदैव अच्छा विचारें, अच्छे योजनाएं बनाएं, अच्छे हो जाएँ और संसार को सुंदर बना सकें। खुद तरें और औरों को भी तारें। हे दाता हमारी यही विनंती हे, इसे आप स्वीकार कीजिए।
आचार्य सुधांशु जी महाराज
जीवन संचेतना नवम्बर २००७
Saturday, October 20, 2007
हे प्रभु हमारा ह्रदय आपके श्री चरणों से जुडे रहें
हे जीवन के आधार। सुख स्वरूप सचिदानंद परमेशवर। समस्त संसार में आपने अपनी कृपाओं को बिखेरा हुआ है। हमारा क्षद्धा भरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो। हे प्रभु। जब हम अपने अंतर्मन में शान्ति स्थापित करते हैं तब हमारे अन्त:स्थ में आपके आनन्द की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं और हमारा रोम-रोम आनन्द से पुलकित होने लगता है। जिससे हमारा व्यवहार रसपूर्ण और प्रेमपूर्ण हो जाता है।
हे प्रभु! हमारा ह्रदय आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे, हमारा मन आपके श्रेचार्नोनें लगा रहे, यह आशीर्वाद हमें अवश्य दो। ताकि हम पर हर दिन नया उजाला, नई उमंगें, नया उल्लास लेकर जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकें ! ऐसी हमारे ऊपर कृपा कीजिए।
हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें।
हे प्रभु! हमें यह शुभाशीष दीजिए। यही आपसे हमारी विनती है, यही याचना है। इसे स्वीकार कीजिए।
आचार्य सुधांशु जी माहाराज
जीवन संचेतना अक्टूबर २००७
हे प्रभु! हमारा ह्रदय आपसे जुडा रहे, हम पर आपकी कृपा बरसती रहे, हमारा मन आपके श्रेचार्नोनें लगा रहे, यह आशीर्वाद हमें अवश्य दो। ताकि हम पर हर दिन नया उजाला, नई उमंगें, नया उल्लास लेकर जीवन के पथ पर अग्रसर हो सकें ! ऐसी हमारे ऊपर कृपा कीजिए।
हे दयालु दाता। हमें ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि हम प्रत्येक दिन को शुभ अवसर बना सकें। प्रत्येक दिन की चुनौती का सामना करने के लिए हमें ऐसी शक्ति प्रदान कीजिए कि जिससे हम संघर्ष में विजयी हों। हमारे द्वारा संसार में कुछ भी बुरा न हो, प्रेमपूर्ण वातावरण में श्वास ले सकें तथा प्रेम को संपूर्ण संसार में बाँट सकें।
हे प्रभु! हमें यह शुभाशीष दीजिए। यही आपसे हमारी विनती है, यही याचना है। इसे स्वीकार कीजिए।
आचार्य सुधांशु जी माहाराज
जीवन संचेतना अक्टूबर २००७
Thursday, October 4, 2007
श्री कृष्ण जीं की प्रार्थना
है प्रभू ! तेरा भरोसा ही संसार का सहारा है
है सच्चिदानंद स्वरूप ! है शुद्ध ,बुद्ध युक्त स्वभाव ! है समस्त जगत को ज्ञानाम्रृत का पान कराने वाले गोविन्द !हम सभी भक्तों का श्रृद्धा भरा प्रणाम स्वीकार हो ! है प्रभु ! तेरा भरोसा ही संम्पूर्ण संसार का सहारा हो ! तेरा अतिशय ,अनन्य प्रेम सभी जीवों के ऊपर अनवरत बरसता है ! हम सदैव अपने चित्त को योग युक्त सत्ता का सत्ता का ध्यान करते रहें !
हे संसार के कण कण में बसने वाले सर्वव्यापक ,जगत के नियन्ता श्रीकृष्ण ! आप परम दयालु हो ,न्यायकारी हो , सुई की नोक का लाखवां हिस्सा भी किसी को कम या अधिक नहीं देते ! हम अल्पज्ञ हैं ,अज्ञानी हैं ,कर्म की छोटी सी चोट से ही हमारे कदम लड़खड़ा जाते हैं ! ऎसी विषम परिस्थिति में भी तुम ही दया करते हो ! निराशा के क्षणों में आशा प्रदान करते हो , निर्बलता में आत्मबल बनकर हमारे अंग संग रहते हो और जब हमारा मन विषाद में ड़ूबजाता हे तब आप प्रसन्नता का प्रसाद प्रदान करते हो !
हे जगदाधार !इस नश्वर संसार में आप ही सर्वज्ञाता हो ,शब्ततीत हो फिर भी इन्सान तुम्हें शब्दों से बांधने का निरर्थक प्रयास कर्ता है ! तेरे चरणों में तो केवल भावनाओं की भनक ही पहुँचती है ! हे भगवान ! मेरा रोम रोम तुम्हें पुकारता रहे ,मेरा ह्रदय प्रेममय हो जाए ,मेरे हाथ परोपकारी होन ,मेरी द्रष्टि सकारात्मक हो जाए और में श्रद्धा का आसान बिछाऊं ,मुझे एसी अनुपम अनुभूती हो जाए कि मेरा देव मेरे सम्मुख खडा है और में आनन्दित होकर चरण वंदना कर रहा हूँ ! हे प्रभु ऐसा आशीर्वाद प्रदान कीजिए यही प्रार्थना गई ,याचना है , स्वीकार कीजिए ,सबका बेडा पार कीजिए !
ॐ शान्ति !शान्ति ! शान्ति
आचार्य सुधांशु जीं महाराज
जीवन संचेतना सितंबर २००७
Sunday, September 30, 2007
देवों के देव महादेव
हे देवाधिदेव महादेव ! हे सच्ग्क्गीदानंद! काल आपके अधीन है ,आप काल से मुक्त हैं ! जिसे मृत्यु जीतनी है ,उसे तो आपमें स्थित होना चाहिय ! आपका मन्त्र मृत्युँजय है !
है शंकर ! है शिवा ! आप त्र्यम्बक अर्थात तीन नेत्रों वाले हैं ! सत्यम ,शिवम और सुन्दरम आपके तीन नेत्र हैं ! आप ज्ञान ,कर्म और भक्ती को धारण करते हैं !भू:, भुव: और स्व: -भूमि ,अंतरिक्ष ,और धुलोक सब आपमें ही व्याप्त है ! जीवन ,मृत्यु और मुक्ति तीनों ही आपके नेत्र हैं ! आप बालचन्द्र ,गंगा और शक्ति -तीनों को धारण करते है ! आप जग का कल्याण करते हैं ! प्रभु ! हम कल्याण मार्ग के पथिक बनें ,यह हमारी विनती है !
ॐ शान्ति : शान्ती : शान्ति :
आचार्य सुधांशु जीं महाराज
जीवन संचेतना फ़रवरी २००४ से
Wednesday, September 26, 2007
आप ही ज्योतिमर्य है
आप ही ज्योतिमर्य है
हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा! आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! 'असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!' हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना। है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंस्य़ायों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये
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हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा! आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! 'असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!' हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना। है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंस्य़ायों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये
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Monday, September 24, 2007
भगवान के नियम, उमंग सदगुण
भगवान के नियम, उमंग सदगुण
है परमदेव परमात्मा! है सच्चिदानंद स्वरूप! है शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव! इस सम्पूर्ण जगत को आपने सुन्दर स्वरूप प्रदान किया। हम सब आपके अबोध बालक, बालिकाएं, आपको बारम्बार प्रणाम करते हैं। हे प्रभु आपके अनुशासन की डोर में सारा संसार बंधा हुआ है। है जगदाधार। दुनिया में आना जाना, संयोग वियोग, हानि लाभ सब आपके नियमों पर आधारित है। हमारे ऊपर ऐसी दया करना जिससे हम भी सुव्यवस्था को धारण कर अपने जीवन में भक्ति के सुन्दर रंग भर सकें।
है परमदेव परमात्मा! है सच्चिदानंद स्वरूप! है शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव! इस सम्पूर्ण जगत को आपने सुन्दर स्वरूप प्रदान किया। हम सब आपके अबोध बालक, बालिकाएं, आपको बारम्बार प्रणाम करते हैं। हे प्रभु आपके अनुशासन की डोर में सारा संसार बंधा हुआ है। है जगदाधार। दुनिया में आना जाना, संयोग वियोग, हानि लाभ सब आपके नियमों पर आधारित है। हमारे ऊपर ऐसी दया करना जिससे हम भी सुव्यवस्था को धारण कर अपने जीवन में भक्ति के सुन्दर रंग भर सकें।
है नारायण! हमारा ह्रदय आपके श्रीचरणों से जुडा रहे हमारा मन सदैव आपकी महिमा का मनन करे, हमारा रोम-रोम तेरे भक्तिभाव से पुलकित हो जाए, ताकि हम हर दिन नया उजाला, नई उमगें, नूतन उल्लास अपने जीवन में अपनाकर भक्तिपथ पर अग्रसर हो सकें। व्यवहार प्रेमपूर्ण हो आशीर्वाद प्रदान करना।
है दीनानाथ! आप सबकी झोलियाँ भरते हैं, हमारी भी कामना है कि दुःख, दारिद्र्य, दुष्कर्मों से उचित दूरी बनाकर सदगुणों से अपना ऐसा श्रृंगार करें कि तेरी दया के सत्पात्र बन जाएँ तथा आपके सुयोग्य पुत्र -पुत्रियाँ कहला सकें। है परम पावन प्रभू। हम आपकी आज्ञा का पालन करते हुए अपने जीवन को सफ़ल बनाने का प्रयास करें!
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यही प्रार्थना ,याचना है स्वीकार करो!
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यही प्रार्थना ,याचना है स्वीकार करो!
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ॐ शान्ति !शान्ती! ! शान्ती !!!
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Sunday, September 23, 2007
आप ही ज्योतिमर्य है
आप ही ज्योतिमर्य है
ईश विनय हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ!
हे जगत के नियंता! हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र! हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो । कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों। निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है।
आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियम तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ। हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, सुगंध बरसता हुआ, हाँ
Service to community is also a kind of prayer
आप ही ज्योतिमर्य है
हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा!आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! ' असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!'हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना।है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंसयों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
आचार्य सुधान्शुजी महाराज
ईश विनय हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ!
हे जगत के नियंता! हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र! हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो । कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों। निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है।
आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियम तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ। हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, सुगंध बरसता हुआ, हाँ
Service to community is also a kind of prayer
आप ही ज्योतिमर्य है
हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा!आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! ' असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!'हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना।है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंसयों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
आचार्य सुधान्शुजी महाराज
Saturday, September 15, 2007
ईश विनय
ईश विनय
हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ! हे जगत के नियंता!
हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र!
हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो ।
कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों।
निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है। आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियाँ तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ।
हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, sugandha बरसता हुआ, हाँ
हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ! हे जगत के नियंता!
हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र!
हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो ।
कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों।
निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है। आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियाँ तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ।
हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, sugandha बरसता हुआ, हाँ
Monday, September 3, 2007
जगत के आधार
जगत के आधार
हे सछिदानंद स्वरुप परम्देव परमात्मा ! हे देवाधिदेव महादेव ! अप ही संपूर्ण जगत के आधार हो ।
Sunday, August 26, 2007
Service to community is also a kind of prayer
Service to communitiy is also a kind of prayer।
विश्व जाग्रति मिशन सिंगापुर मंडल कार्यकर्ताए वृधाश्रम में सेवामे मग्न।
आप ही ज्योतिमर्य है
हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा!
आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! ' असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!'
हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना।
है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंसयों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! ' असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!'
हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना।
है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंसयों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
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