ईश विनय
हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ! हे जगत के नियंता!
हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र!
हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो ।
कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों।
निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है। आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियाँ तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ।
हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, sugandha बरसता हुआ, हाँ
Saturday, September 15, 2007
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