आप ही ज्योतिमर्य है
ईश विनय हे प्रभु! हे संसार के स्वामी! हे दीनानाथ!
हे जगत के नियंता! हे सच्चिदानन्दस्वरूप! हे अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र! हे शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव! इस संसार के प्रत्येक कण -कण में, जर्रे-जर्रे में आप समाये हुए हो । कोई ऐसा स्थान नहीं है, हे प्रभु! जहाँ आप न हों। निरंतर बहती हुई नदियों कें प्रवाह में जल की धाराओं को बहाने वाले आप है। खिलते हुए फूलों में सुगंधि और सौन्दर्य देने वाले आप हैं। चांद और सितारों में मुस्कराने वाले आप ही है।
आपकी कोमलता और सुन्दरता फूलों में है। माधुर्य पक्षियों के कन्ठों में है। हे प्रभु! सर्वत्र साड़ी स्रुष्टी मे आपके नियम है। यह् सारा संसार आपके नियमों से बंधा है। समस्त प्राणी मात्र जो भी संसार में जन्म लेता है आपकी व्यवस्था से दुनिया मे आता है। हे भगवान! आपका नियम तोड़कर कोई भी सूखी नहीं रह सकता। नियम तोड़ने वाला दुःख भोगता है। हे नारायण! हे मेरे प्रभु! ऐसी कृपा करो कि हमारा हर दिन शुभ दिन बन जाय। प्रत्येक कर्म शुभ कर्म हो। सोते जागते, उठते-बैठते तेरा ध्यान करुँ। भूल से भी कभी किसी को दुःख न दूँ। हे प्रभु! इस संसार में हमारा जन्म लेना सार्थक हो जाय। इस दुनिया को छोड़कर जायें। जैसे कोई फूल पेड पर खिलाता हुआ, सुगंध बरसता हुआ, हाँ
Service to community is also a kind of prayer
आप ही ज्योतिमर्य है
हे प्रभु! हे जीवन के आधार! हे दयालुदेवा!आप ही ज्योतिमर्य है, आप प्रकाशस्वरूप है, इसलिये हम विनंती करते है। प्रभु! ' असतो माँ सद्गमय तमसो माँ ज्योतिम्रमय म्रुत्योम्रा अमृतं गमय!'हे प्रभु! जो असत है, उस असत के पथ से हमको सुपथ पर लेकर चलिए। जो मार्ग हमको भटकाते है, जिन मार्गो पर चलते - चलते जीवन के ल्क्ष्य से हम दूर हो जाये, विनाशशील संसार मे विनाश करने के लिए उर्जा को, अपनी शक्तिं को लगाते रह जाये, उस मार्ग से हमको अप बचाइए और जिस मार्ग पर चलने से हम अपने जीवन मे उन्नत हो, सूखी हो, प्रसन्न हो शांत हो, आनंदित हो, हे प्रभु! वही मार्ग हमको देना।है दयालुदेव! हमारी विनंती है कि जो अँधेरा है उसके पर हम निकल सकें अपने अंधेरों के पार निराशा के पार, दुख के पार। अपनी उलझनो के पार समंसयों से दूर आगे बढकर इन सब स्थितियों को जीतकर जो प्रकाश का मार्ग है, उसका अवलंबन करे। दयालु देव! हमारी यह भी याचना है कि जो पीडा है, दुःख है, संताप है, उस सबसे हम ऊपर उठ जाये, उससे बच सके परम अमृत को प्राप्त क्र सके, ऐसी दिशा हमको दीजिए हमारी मति को सुमति बनाये यही विनती है हमारी। कृपया इसे स्वीकार कीजिये।
आचार्य सुधान्शुजी महाराज
Sunday, September 23, 2007
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